पटना : बिहार में खेल एवं राजीनीति का चोली -दामन का साथ है। जहाँ खेल होता है वही राजनीती शुरू हो जाती है। चाहे वह खिलाड़ियों के चयन का मामला हो या एसोसिएशन में कुर्शी पर बैठने का मामला हो। वह राज्य संघ हो या जिला संघ हो हर जगह से भ्रष्टाचारी की खबरे आते रहते है। पदाधिकारियों को सिर्फ कुर्शी चाहिए ताकि छपाई हो सके अगर उसका कार्यकाल खत्म हो तो भी उसी के संबंधी उसी कुर्शी पर चाहिए ताकि उसका काम जारी रहे। यह हाल है बिहार में खेल का।

चयन में खिलाड़ियों की अनदेखी,पदाधिकारियों के संबंधी खिलाड़ियों का चयन हो या उसी संघ में पूर्व पदाधिकारियों संबंधी का वर्तमान पदाधिकारी बनाना हो यह सभी देखने को मिलता है। बिहार में खेल नहीं खेलवाड़ होता है ऐसा इसलिए भी खिलाड़ियों इस बार नेशनल गेम में बिहार कोई भी स्वर्ण या रजत पद तक जितने में नाकाम रही जबकि बात करे क्रिकेट की तो बीसीसीआई के घरेलु मुकाबले में बिहार का औकाद पता चल जाता है जब बड़े टीमों से खेलती है। अब तो ऐसा भी देखने को मिलता है छोटे टीम भी बिहार को टकर दे देती है।

ऐसा हाल ना होता अगर पदाधिकारियों को दिलो में खेल बस्ता, पर आजकल किसी को खेल से कोई मतलब नहीं रहा वह खेल तो करवा रहे है पर बच्चो के खेलवाड़ कर रहे है। अगर एक नजर देखा जाये तो बिहार में कितने खेल होते है,खिलाड़ियों को कितने मौके मिलते है तैयारी की। सूत्रों से पता चला है बिहार में खेल के संसाधनों की कमी है लेकिन जितना है उतने में भी खेल बंद रखना यह दर्शाता है की जिस पदाधिकारी को खिलाड़ियों को उम्मीद होती है वह सिर्फ कुर्शी को बनाये रखना चाहता है।

आपका राजा ख़राब है कहना गलत होगा,यह कहना चाहिए की प्रजा अपनी एकता को नहीं समझती है। कुछ पदाधिकारी अच्छे या खेल प्रेमी या यू कहे खेल जुड़े हुई चुन कर आते भी है तो भी जबतक कुर्शी पर हो उसका विरोध नहीं कर पाते है। क्योंकि उसे भी कुर्शी का डर सता-ता है लेकिन वह भूल जाते है दोषी का साथ देने वाला भी दोषी ही होता है लेकिन जब उच्च पदाधिकारियों की बात नहीं सुनते है या विरोध करते है तो एसोसिएशन से बाहर कर दिए जाते है ऐसा इसलिए क्योकि वह अकेला विरोध करते है। सब कुर्शी का ही खेल तो है कुर्शी का डर या मोह जिस दिन पदाधिकारियों के मन से निकल जायेगा खेल सुधर जायेगा।

खिलाड़ियों को क्या जरूरत है इसकी कोई बात ही नहीं करता है। जब नेशनल गेम होते है टीम को पेपर पर बना या ट्रायल के माध्यम से चुन उसे खेलने के लिए भेज दिया जाता है जबकि दूसरे राज्य के टीम उस खेल के लिए वर्ष भर तैयारी में रहती है जब वैसे टीमों के साथ भिड़ेगा तो हारना निश्चित ही है वह तो शुक्र करिये बिहार के खिलाड़ियों का की एसोसिएशन खेल कराये या ना कराए लेकिन वह खुद अपनी तैयारी में रहते है और एक दो मुकबला में जीत दिला लाज बचा लेती है नहीं तो सोचनीय विषय है की बिहार खेल का क्या छवि रहता भारतवर्ष में। खेलबिहार किसी व्यक्तिगत या किसी संघ पर कतई सवाल नहीं कर रहा है। खिलाड़ियों की आपबीती और कुछ संघ में चल रहे खेल को आपके सामने रखा है।

 

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